निर्मला सीतारमण हाल ही में IMF और वर्ल्ड बैंक की वार्षिक बैठक में हिस्सा लेने के लिए अमेरिका की आधिकारिक यात्रा पर थी। चूँकि भारत G20 की अध्यक्षता दिसंबर 2022 से एक साल के लिए करने वाला है, इसलिए केंद्रीय मंत्री सीतारमण इस समय में G20 देशों के वित्त मंत्रियों से मिली। यहाँ वह US Treasury Secretary Janet Yellen से मिली। इस दौरान उन्होंने IMF और वर्ल्ड बैंक के शीर्ष अधिकारियों के साथ भी बैठक की। G20 देशों के वित्त मंत्रियों के साथ साथ अन्य देशों के वित्त मंत्रियों से भी मिली।
केंद्रीय वित्त मंत्री सीतारमण की US यात्रा का उद्देश्य
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने (11 से 16 अक्टूबर 2022 )अमेरिका के वाशिंगटन में दुनिया के कई वित्त मंत्रियों और कई अंतरराष्ट्रीय संगठनों के शीर्ष अधिकारी से बैठक की। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP), आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (OECD), और मनी लॉडरिंग और आंतकवाद की निगरानी करने वाली संस्था वित्तीय कार्रवाई कार्य बल (FATF) के शीर्ष अधिकारी के साथ चर्चाओं में भाग लिया और “भारत की आर्थिक संभावनाएं और विश्व अर्थव्यवस्था में भूमिका” के पक्ष को सबके समक्ष प्रस्तुत किया।
IMF के समक्ष सब्सिडी पर भारत का दृष्टिकोण
केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने IMF की विकास समिति की वाशिंगटन में बैठक के दौरान आग्रह किया कि वर्ल्ड बैंक को सब्सिडी पर अपने एक तरफा दृष्टिकोण से बचना चाहिए। हमें इस बात पर अधिक ध्यान केंद्रित करते हुए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सहमत बुनियादी सिद्धांतों के साथ अलग अलग जिम्मेदारियों को समझना चाहिए। हमारे द्वारा दी जाने वाली कृषि, मत्स्य और पेट्रोलियम पदार्थों पर दी जाने वाली सब्सिडी सिर्फ कम आय वाले जरुरतमंदों को दी जाती है।
वर्ल्ड बैंक की तरफ से हमेशा भारत पर दबाव रहता है कि अपनी उर्वरक पेट्रोलियम और कृषि पर सब्सिडी को कम करे। इसी संदर्भ में बात करते हुए वित्त मंत्री ने उज्ज्वला योजना में दी जाने वाली सब्सिडी का उदाहरण देते हुए बताया कि किस तरह से ये गरीब महिलाओं के जीवन स्तर को सुधार रही है।
भारत की विकास दर
11अक्टूबर को IMF ने भारत की वृद्धि दर के अपने जनवरी के अनुमान 8.2 प्रतिशत से घटा कर 6.8 प्रतिशत कर दिया था। IMF ने रुस यूक्रैन के बीच चल रहे सैन्य संघर्ष के कारण सारी दुनिया की अर्थव्यवस्थाओं पर पड़ रहे नकारात्मक प्रभाव के कारण विकास दर में कमी की थी।
IMF ने कहा कि कोरोना वायरस की मार से उभरती हुई वैश्विक अर्थव्यवस्था को, रुस के यूक्रैन पर हमला करने के कारण, बढ़ती हुई खाने पीने की और ऊर्जा की महंगाई दर को झेलना पड़ रहा है। इस महंगाई को नियंत्रित करने के लिए केंद्रीय बैंकों द्वारा ब्याज दरों में बढ़ोतरी मुश्किलों को और बढ़ाने वाली है। इस कारण हमें अगले साल की विकास दर के भी गिरने का अनुमान है।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अमेरिका में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) और विश्व बैंक (World Bank) की वार्षिक मीटिंग में कहा कि भारत की विकास दर इस वित्त वर्ष के लिए 7 प्रतिशत के आस पास रहने का अनुमान है, लेकिन हमें वैश्विक विकास और भू-राजनैतिक (geo-political) वातावरण की चिंता है। विकसित देशों में मुद्रास्फीति और ऊर्जा की कमी भी हमारी चिंता में शामिल है।
सुश्री सीतारमण ने भारत के पक्ष को व्यक्त करते हुए कहा कि उनको पता है कि सारी दुनिया की विकास दर के अनुमान को घटाया जा रहा है। मुझे उम्मीद है कि भारत की विकास दर इस वित्त वर्ष के लिए 7 प्रतिशत के आसपास रहेगी। मुझे विश्वास है कि भारत शेष दशक में दुनिया की अपेक्षा ज्यादा विकास दर हासिल करेगा।
महामारी से निपटने की भारत का प्रयास
हमने महामारी की विभिन्न और जटिल चुनौतियों का सामना करते हुए आदर्श रुप प्रस्तुत किया है। सबसे पहले हम वैक्सीन के उत्पादन और टीकाकरण में तेजी लाए और इस महामारी से भारत को मुक्त करने के उद्देश्य को सार्थक करने का प्रयास किया। भारत में हमने 200 करोड़ वैक्सीन की खुराक लोगों को दी, जो कि भारत में ही बनी थी। फिर हमने अपने डिजिटल बुनियादी ढाँचे से सुनिश्चित किया कि राहत सही गंतव्य तक पहुंचे।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि विकास मोदी सरकार की सबसे ज्यादा सबसे बड़ी प्राथमिकता है। कोरोना महामारी से बाहर निकलती हुई, भारत की अर्थव्यवस्था की गति को बरकरार रखना हमारी प्रमुख प्राथमिकताओं में शामिल है। निर्मला सीतारमण ने देश के विशाल सार्वजनिक वितरण नेटवर्क के माध्यम से 80 करोड़ से अधिक गरीब और कमजोर परिवारों को मुफ्त खाद्यान्न की उपलब्धता के बारे में भी बताया।
रुपए की गिरावट पर भारत का पक्ष
वित्त मंत्री ने कहा कि भारतीय रुपया गिर नहीं रहा बल्कि डॉलर मजबूत हो रहा है। भारतीय अर्थव्यवस्था का आधार मजबूत है और हमारी मुद्रा कई उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं से बेहतर प्रदर्शन कर रही है। “भारतीय अर्थव्यवस्था के आधार सुदृढ़ होने के साथ Macroeconomic फंडामेंटल भी अच्छे हैं।” रिज़र्व बैंक रुपए को बचाने की कोशिश नहीं कर रहा, बल्कि वे अनावश्यक अस्थिरता ना हो इस पर ध्यान दे रहा है।
व्यापार घाटे पर निर्मला सीतारमण ने कहा कि यह निश्चिंत ही चिंता का विषय है। हमारा निर्यात आयात के मुकाबले कम हो रहा है। हम इस बात पर भी नज़र रख रहे हैं कि किसी एक देश के साथ यह अंतर अधिक न बढ़ जाए।
यूरोप में संघर्ष का भारत पर असर
यूरोप में संघर्ष शुरू होने के बाद हमने सुनिश्चित किया कि खानेपीने का सामान और ईंधन सबको पर्याप्त मात्रा में उपलब्थ हो। इसलिए हमने खाद्य तेल पर आयात शुल्क और ईंधन पर उत्पाद शुल्क में कटौती की। केंद्रीय बैंक ने भी तत्परता से कार्य करते हुए प्रयास किया कि मुद्रास्फीति नियंत्रण में रहे और भारतीय मुद्रा का ह्रास इतनी तेजी से ना हो, जिसके कारण विश्वास का ह्रास हो।
आगामी बजट की चुनोतियाँ
आगामी बजट में हमारे लिए विकास को केंद्र में रखते हुए महंगे ईंधन और मुद्रास्फीति के साथ तालमेल बैठना जरुरी होगा। हमें ध्यान रखना होगा कि महंगे उर्वरक और ईंधन का प्रभाव आम जनता पर ना पड़े। महंगा ईंधन हमारे लिए सबसे बड़ी समस्या है।
महामारी के इतने बड़े झटके के बाद, यूरोप में संघर्ष के कारण ऊर्जा, खाद और खाने पीने की चीजें प्रभावित हुई हैं। अब इन सब के कारण वैश्विक बाजारों में सख्त मौद्रिक नीतियां अपनाई जा रही हैं । प्राकृतिक रुप से विकास दर की संभावनाएं सब देशों के साथ भारत की भी कम ही हैं। “हम बाहरी कारकों के माध्यम से भी प्रभावित हो रहे हैं” जिसने विकास और मुद्रास्फीति को दो धारी तलवार बना दिया है।
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वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की 2022 की अमेरिका की अधिकारिक यात्रा पर कब और किस उद्देश्य से गई थी ?
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण 11 से 16 अक्टूबर 2022 को अमेरिका में IMF और वर्ल्ड बैंक की वार्षिक बैठक में अंतरराष्ट्रीय संगठनों के शीर्ष अधिकारी से बातचीत करने गयी थी। इस दौरान वह कई अन्य देशों के वित्त मत्रियों से भी मिली।
यूरोप में संघर्ष का भारत पर क्या असर होगा ?
भारत को उर्वरक और ईंधन की बढ़ी हुई कीमत चुकानी पड़ रही हैं। कुछ हद तक खाद्य पदार्थों की महंगाई का असर भी भारत पर पड़ रहा है जिसके फलस्वरूप भारत के व्यापार घाटे पर असर दृष्टिगत हो रहा है।
IMF ने भारत की विकास दर में कमी क्यों की है?
IMF ने यूरोप में चल रहे सैन्य संघर्ष के कारण बढ़ रहीं मुद्रा स्फीति को नियंत्रित करने की केंद्रीय बैंकों के प्रयास के कारण विश्व के सब देशों का विकास का अनुमान को घटाया है। भारत भी इस वैश्विक संकट से अछूता नहीं है। इसी कारण से, IMF ने भारत की वृद्धि दर के अनुमान को कम किया है।